हाँ, तीन लोग भी कपल होते हैं!

– From a friend who wants to remain anonymous 🙂

जाना था शहर के कोलाहल से दूर,
सुकून की तलाश में,
जहाँ सूरज की तपन तेज़ न हो…
बस हो, तो पहाड़यों की ठण्डक।
मैं, मेरी बीएफएफ महिला मित्र, और मेरा सूद!

नाम नहीं देना चाहता, इसलिये पूरी कहानी में ‘सूद’ कहकर सम्बोधित करूँगा। दरअसल जिस सूद का मैं ज़िक्र कर रहा हूँ, वो मेरी महिला मित्र का पति है। अब मेरी दोस्ती तो मेरी सहेली से हुयी थी, लेकिन इसे बरकरार रखने में उसके पति का बहुत बड़ा योगदान है। अपनी बीवी के मित्र को इतना सहन करना वाकई काबिल-ए-तारीफ़ है। देखा जाये तो मेरी सहेली से मेरी दोस्ती एक तरह का ‘असल’ है, जिसे आप प्रिंसिपल कह सकते हैं; और उसका पति है ‘सूद’, यानी इंट्रेस्ट। अब ये तो जगजाहिर है कि हर इंसान को असल से ज़्यादा सूद या ब्याज प्यारा होता है। बस ऐसा ही रिश्ता है मेरा और मेरी सहेली के पति का। महज़ डेढ़ साल में ऐसी ट्यूनिंग हो गयी है उसके साथ, कि अब दोस्त वाली नहीं बल्कि भाई वाली फीलिंग आती है उसके लिये। होता होगा न आपके साथ भी… जिन्दगी के बाज़ार में लेने गये एक रिश्ता, और मिला एक के साथ एक फ़्री! और अक्सर ऐसा होता है कि जो फ़्री में मिला होता है, उसके साथ एक बड़ा प्यारा सा अटैचमेंट हो जाता है। मैगी के पैकेट के साथ फ़्री में बाउल मिलता है ना…आपको ज़्यादा अटैचमेंट उस बाउल के साथ होता है। रोज़ उसी को लेकर बैठते हैं आप, और रोज़ मन से साफ़ करके चमकाकर रखते हैं।

खैर, कहाँ मैं भी रिश्ते टटोलने बैठ गया। कहानी को आगे बढ़ाता हूँ। तो प्लान बना मेरा, मेरी बीएफएफ सहेली, और मेरे सूद का। रुकिये रुकिये! ऐसा भी हो सकता है कि प्लान उन दोनों मियां-बीवी का हो, और मैं भी साथ में टँग लिया। खैर, अच्छा ही हुआ…ये तो पता चल गया कि ‘लाइफटाईम वैलिडिटी’ वाला एक रिश्ता कमा लिया था मैंने।

हर यात्रा का कथानक उर्फ़ प्लॉट लम्बा होता है। कई स्टॉप होते हैं, हर स्टॉप पर एक अलग कहानी होती है, अलग यादें होती हैं। ऐसी ही कुछ यादें बनाने निकले थे हम तीनों, सकारात्मक सोच के साथ, अपने ऑफिस के तनाव से दूर। ब्रह्मांड का सबसे सशक्त नियम भी है कि लाइक अट्रेक्ट्स लाइक। इसका मतलब है ‘यदि हम अपनी जिंदगी में सकारात्मक चाहते हैं, तो सकारात्मक सोचें’। और ऐसी ही थी हमारी ट्रिप…अच्छी यादों से भरपूर।

मेरी सहेली का जन्मदिन भी था उसी दिन। लेकिन वर्किंग डे होने की वजह से हम रात में निकले अपने घर से। आधी रात को सफ़र शुरु किया। चिप्स, कोल्ड-ड्रिंक्स, बीयर, व्हिस्की, पानी – और पसंदीदा गानों की प्लेलिस्ट! हवा में ठण्ड थी, कार की विंडोज़ थोड़ी खुली रखी थीं। गानों, बातों और ‘सूद’ की सिगरटों का सिलसिला जारी था। मैंने उन दिनों सिगरेट छोड़ी हुयी थी। खुली विन्डो से हाथ बाहर निकालकर मैं हवा के साथ लय में उसे लहरा रहा था। मुझे अच्छा लगता है जब हम तीनों साथ होते हैं। कार चाहे किसी की भी हो, मैं और ‘सूद’ आगे बैठते हैं, और मेरी सहेली पीछे। फुल कम्फर्ट के साथ। समय समय पर आगे खिसक कर हम दोनों के बीच में मुंडी टांगकर आगे होकर बैठ जाती है, मानो हम दोनों को बराबर की अटेंशन दे रही हो। हम तीनों घंटों बातें कर सकते हैं।

इसी बीच नशा भी बढ़ता जा रहा था। हमारा पहला स्टॉप था मूर्थल। जी, वही स्पेशल परांठे और दाल मखनी। गुलशन पर रुके थे। आधी रात को अपने करीबी और खास दोस्तों के साथ हाईवे पर ढाबे का खाना भी अपने आप में पूरा फन है। मानो जिन्दगी पूरी हो जैसे। इसके बाद और इससे ज़्यादा आपको और कुछ नहीं चाहिये। ऐसा साथ हो तो कोई डर या फिक्र आपके मन में नहीं होती।

मेरी सहेली ने रास्ते में थोड़ी सी झपकी ले ली थी। इसके बाद मुझे भी महसूस हो रहा था मानो नींद अपने आगोश में लेने को है। तो कार साइड में रोकी, बाहर निकलकर मैंने और ‘सूद’ ने एक एक सुट्टा मारा। लेकिन फिर मैंने खुद ही ‘सूद’ से कहा ड्राइव करने के लिये। ड्राईविंग में उसका अच्छा हाथ सेट है। मैं सो तो गया था, पर कानों में गानों की आवाज़ पहुँच रही थी। जब उठा, तो पता चला कि सवेरा हो चुका था, और हम कसौली पहुँच चुके थे। जहाँ रुकने का अरेंजमेंट था, वो होटल एक नयी प्रॉपर्टी थी। वहाँ का मालिक हमें रास्ते में मिलने आ रहा था। इसी बीच हमने नाश्ता निपटा लिया।

होटल अच्छा था, मानो पहाड़ियों से घिरा हुआ और आसपास सिर्फ जंगल। थोड़ी ऊँचाई पर था, तो हमारी कार हिचकोले खाते हुए अपना रास्ता नापकर पहुँची थी। हमें वाकई में इस समय स्वर्ग से भी अधिक असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी। पहुँचने के बाद ‘सूद’ को थोड़ा आराम करना था, और मुझे शराब का सिलसिला शुरु। वहाँ माहौल ही कुछ ऐसा था कि मेरी सिगरेट की तलब ने अपनी ओर फिर खींच लिया।

मैं अकेला ही पी रहा था। अपनी सहेली के साथ घंटों गप्पें मारी। इसी बीच ‘सूद’ ने ज्वाइन कर लिया। दोपहर तक हम बस पीते रहे और किस्से सुनाते रहे। फिर तय हुआ कि बाहर निकलते हैं।सूरज की तपन तेज़ थी इस वक़्त। लेकिन मौसम खुशगवार था। टिम्बर ट्रेल, मंकी पॉइंट, सनसेट पॉइंट आदि घूमकर हम शाम ढलने पर पहुँचे मॉल रोड। मोमोज़, आइसक्रीम, समोसे, चाय और कॉफ़ी आदि के साथ पूरा लुत्फ़ लिया। पता नहीं आपमें से कितने लोग समझ सकते हैं कि आपके छोटे से ग्रुप में एक लड़की फ्रेंड होना कितना ज़रूरी है, या उसके कितने फायदे हैं। एक ‘सेन्स ऑफ़ कम्प्लीटनेस’ महसूस होता है। वो आपका ध्यान रख सकती है, किसी चीज़ में अपनी लिमिट का ध्यान ना रखने पर आपको टोक सकती है, और आपको खाने पीने के उम्दा विकल्प सुझा सकती है। खैर, मॉल रोड का अनुभव वाकई जबर्दस्त रहा।

प्राकृतिक नज़ारे हर तरफ़ थे भरपूर,
पहाड़ थे ज़रा हमसे दूर,
पथरीले रास्तों पर कूदते फांदते,
तस्वीरे हजारों कैद कर लीं हमने अपनी आँखों में।
फिर आई सुरमई गीतों की शाम सुहानी,
गूँज रही है धुन अब तक कानों में,
जीने का नया फिर अहसास जगा,
मिलकर उनकी बातों में।
तस्वीरे हजारों कैद कर लीं हमने अपनी आँखों में।

फिर हुयी रात। बोतलें फिर से खुलीं। और इस बार तो हमारी सहेली के लिये भी थोड़ी परोसी गयी। बाहर घुप्प अन्धेरा, अन्दर भरपूर रौशनी, बाहर निपट सन्नाटा, अन्दर तेज़ आवाज़ में गाने चलते हुये…और उन गानों पर नाचते मैं और ‘सूद’। माहौल ऐसा ही था मानो मेरी सहेली ठाठ से बैठी अपनी ड्रिंक एन्जॉय कर रही थी, और मैं और ‘सूद’ नाच नाचकर उसका दिल बहला रहे थे। फिर अचानक सनक जगी उस सूनसान अन्धेरे जंगल में जाकर देखने की और सुट्टा मारने की। गौर फर्माइयेगा, कि यह सनक रात करीब 12:30 या 01:00 बजे दिमाग में उठी। और किसी ने किसी को रोका भी नहीं। बल्कि तीनों वीर बान्कुड़े बनकर चल दिये बाहर। सामने जंगल तक जाने की तो हिम्मत नहीं हुयी, पर थोड़ी दूर तक जाकर अपनी सनक मिटाकर आये। वहाँ खड़े सिगरेट पी ही रहे थे कि अचानक पेड़ों की ओट में से कुछ सरसराहट हुयी। ना जाने कोई जंगली जानवर था, या सच का भूत-प्रेत…लेकिन उस समय दो पल के लिये हमें अपनी ‘सच्ची दोस्ती’ का ख्याल ही नहीं रहा। सब अपनी जान बचाने को तुरंत होटल के अन्दर भागे।

रात करीब 2 बजे तक ऐसे ही तमाशे होते रहे। ‘सूद’ मुझे वैसे चुपचाप सा रहने वाला शान्त स्वभाव का लड़का प्रतीत होता था। पर कसौली की वादियों में वहाँ उसका मस्तीखोर रूप भी देखने को मिला। वहीं दूसरी तरफ अपनी सहेली के व्यक्तित्व का एक सेंसिबल और मैच्योर पहलू भी दिखा। अगले दिन सुबह उठकर, नाश्ते के बाद वापस निकलना था। ट्रिप छोटी थी, पर यादें असीम।

दो दिन, तीन लोग, एक सच्ची दोस्ती से बँधा रिश्ता…और बटोरने को अनगिनत पल।

मन तो आख़िर मन है,
ठहर जाऊँ यहीं, लगा सोचने,
क्या रखा है संसार की बातों में,
तस्वीरे हजारों कैद कर लीं हमने अपनी आँखों में।
सिर्फ़ तन लेकर लौटा हूँ , मन रह गया वहीं,
बीते हुए पल याद आते हैं बार- बार,
सफर का हाल सुनाता हूँ जब मैं,
तुमको बातों – बातों में।
तस्वीरे हजारों कैद कर लीं हमने अपनी आँखों में
🙂

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